शराब तस्करी को ‘अस्थायी परमिट’ की आड़ में वैध ठहराने वाले आबकारी विभाग के अफसरों पर शिकंजा कसने लगा है। मामले में धार के तत्कालीन सहायक आबकारी आयुक्त विक्रमदीप सिंह सांगर को निलंबित कर दिया गया है। वे वर्तमान में उज्जैन में पदस्थ थे। इससे पहले आबकारी आयुक्त ने धार जिले के सहायक आबकारी अधिकारी आनंद डंडीर और उपनिरीक्षक राजेंद्र सिंह चौहान को पहले ही निलंबित कर दिया था।
इसके अलावा हाई कोर्ट के निर्देश पर डीजीपी ने पूरे मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) गठित की है। इस टीम के अध्यक्ष इंदौर (देहात) डीआईजी निमिष अग्रवाल होंगे। टीम में आलीराजपुर एसपी राजेश व्यास और जोबट एडीओपी नीरज नामदेव को सदस्य बनाया गया है।
एसआईटी अब शराब तस्करी से जुड़े तमाम बिंदुओं—जैसे एक ही घटना में दो एफआईआर, परमिट की प्रक्रिया में अनियमितता, और विभागीय मिलीभगत की जांच करेगी। टीम सीधे हाई कोर्ट की निगरानी में काम करेगी। बता दें कि शराब की यह अनोखी तस्करी इंदौर हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव एस. कलगांवकर की बेंच ने पकड़ी थी। सुनवाई के दौरान आबकारी विभाग और तस्करों की मिलीभगत पर सवाल उठाए थे।
अस्थायी परमिट की आड़ में शराब तस्करी को वैध ठहराया अक्टूबर 2024 में जोबट थाना क्षेत्र से दो वाहनों में कुल 14,760 लीटर अवैध शराब पकड़ी गई थी। दोनों ड्राइवरों के पास कोई वैध परमिट नहीं था। बाद में तस्करी को वैध ठहराने के लिए दो महीने बाद अस्थायी परमिट पेश किए गए, जिनमें जब्त शराब से अलग बैच नंबर थे।
आबकारी उपनिरीक्षक राजेंद्र सिंह चौहान ने हाई कोर्ट में स्वीकार किया कि डेढ़ घंटे में परमिट जारी कर शराब ट्रांसफर की गई। कोर्ट ने इसे अविश्वसनीय बताया और अफसरों-तस्करों की मिलीभगत मानते हुए जांच के आदेश दिए। जिला कोर्ट को भी तथ्यों से गुमराह किया गया था। लेकिन परमिट में दर्ज बैच नंबर और जब्त शराब के बैच नंबर मेल नहीं खाते थे।