मध्य प्रदेश में निजी शिक्षा व्यवस्था पर संकट मंडरा रहा है। इसके लिए सीधेतौर पर राज्य शिक्षा केंद्र की नीतियां जिम्मेदार हैं। इन आरोपों के साथ, प्रदेश के लगभग 8 हजार निजी स्कूलों का अस्तित्व खतरे में है। इसी को लेकर स्कूल संचालक, शिक्षक, पेरेंट्स और छात्र एकजुट हो गए हैं।
अपनी मांगों को लेकर सोमवार रात से ही राजधानी भोपाल में एकत्र आंदोलनकारी मंगलवार दोपहर 12 बजे से राज्य शिक्षा केंद्र के सामने प्रदर्शन करेंगे। उन्होंने इसे 'कोई आंदोलन नहीं, बल्कि शिक्षा के अधिकार की पुकार' बताया है। प्रदर्शनकारियों का आना अभी भी जारी है।
प्रदर्शनकारियों ने लगाए यह आरोप:
- प्रदेश के लगभग 25000 निजी स्कूलों में से राज्य शिक्षा केंद्र ने सिर्फ 16000 को ही मान्यता दी है। शेष 8000 स्कूलों को बंद करने का प्रयास किया जा रहा है। यह कदम न केवल स्कूल संचालकों के हितों के विरुद्ध है, बल्कि लाखों गरीब और मध्यम वर्गीय छात्रों के भविष्य को भी अंधेरे में धकेल रहा है। अनुमान है कि इन स्कूलों के बंद होने से 20000 से 25000 छात्र शिक्षा से वंचित हो जाएंगे।
- नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (RTE) के अंतर्गत सरकार ने एक लाख से अधिक सीटें कम कर दी हैं। जिससे वंचित वर्ग के बच्चों का मौलिक शिक्षा का अधिकार भी उनसे छीना जा रहा है।
- RTE के अंतर्गत निजी स्कूलों को दी जाने वाली प्रतिपूर्ति राशि का भुगतान सरकार ने 3 साल से नहीं किया है। उनकी शिकायत है कि यह स्थिति न केवल स्कूलों की आर्थिक स्थिति को कमजोर कर रही है, बल्कि शिक्षकों की नौकरियों और छात्रों की पढ़ाई को भी सीधे तौर पर संकट में डाल रही है।
- निजी स्कूल संचालकों का आरोप है कि राज्य शिक्षा केंद्र भोपाल द्वारा ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों के स्कूलों की पूरी तरह उपेक्षा कर दी गई है।
यह हैं मुख्य मांगें:
- सभी निजी स्कूलों को समान अवसर व न्याय मिले।
- RTE की सीटें पुनः बहाल की जाएं।
- लंबित RTE भुगतान तत्काल दिया जाए।
- स्कूलों को मनमाने तरीके से बंद करने की कार्यवाही रोकी जाए।